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मुझे गरीब ही रहने दो... 
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न जताओ अपनापन. ये मरहम रहने दो. 
चाहो तो मार दो खंजर. मगर ये जख्म रहने दो.... 
नहीं जिगर मुझमे. यों रक्त से होली खेलना. 
मिट्टी का पुतला हूँ. बस गुलाल रहने दो...........


न डालो बंदिश यों .दौलतमन्द बना के मुझे 
कैद करे जो शोहरत. वो शोहरत रहने दो..... 
नहीं सम्भाल पाऊँगा .तेरी दौलत खैरात में. 
मै गरीब हूँ दोस्त.  मुझे गरीब रहने दो........ 


नहीं जी सकता. यों दिखावटी मुखौटो से 
पुरान ही सही मगर मेरा लिबास रहने दो. ...
मै नहीं सामिल तेरे चकाचौंध की दौड में 
चाल मध्यम ही सही. ये रफ़्तार रहने दो. .....


घुटन सी होती है. इन आलिशान महलो में 
चुभता है मख़मली बिस्तर. बस जमी रहने दो. 
कैद सी है ज़िन्दगी तेरी यों नाम होने के बाद 
मै गरीब हूँ दोस्त. मुझे आजाद रहने दे........... 
                    सन्दीप गढवाली ©®