सुबोध उनियाल का दमदार कदम खड़े कर गया कई सवाल

आमतौर पर पहाड़ों पर मुख्यालय होने के बावजूद सरकारी अधिकारियों का राजधानी प्रेम इतना है कि वे शासन और प्रशासन के दिशा निर्देशों का कितनी ईमानदारी से उल्लंघन करते हैं यह किसी से छिपा नहीं है। ऐसा ही एक मामला वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय भरसार से जुड़ा हुआ है जिसमें शासन ने कई बार विश्वविद्यालय के कुलपति और कुलसचिव को विश्वविद्यालय के मुख्यालय भरसार बैठने के निर्देश दिए परंतु हर बार वही कहानी दोहराई जाती रही। जिस पर कृषि मंत्री सुबोध उनियाल की सख्ताई के बाद शासन ने सेलाकुई स्थित शोध केन्द्र को बंद करने का आदेश जारी करते हुए सगंध पौधा केंद्र को सौंपने का आदेश जारी कर दिया है।
सेलाकुई का संस्थान तो बंद हो गया है परंतु भरसार के कई अधिकारियों (जैसे जन सम्पर्क अधिकारी) और कर्मचारियों के अटैचमेंट के फार्मूले का क्या होगा जिस पर वह नियुक्ति से लेकर आज तक देहरादून में ही डटे हुए हैं। सेलाकुई में उपनल के माध्यम से काम करने वाले उन कर्मचारियों का क्या होगा जो आठ दस हजार के सहारे जीवन जी रहे हैं!
भरसार विश्वविद्यालय प्रतिनियुक्ति, उपनल और अंतरिम व्यवस्था के तहत संचालित होने वाला अनोखा विश्वविद्यालय नहीं है बल्कि यह केन्द्रीय मंत्री डा रमेश पोखरियाल निशंक का ड्रीम प्रोजेक्ट भी है जिसे वे केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं! आधे अधूरे तामझाम के साथ विभागों को हांकना हमारे माननीयों के लिए कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि यह उनकी कार्यशैली की एक विशेषता भी है। भरसार विश्वविद्यालय तो पदों पर विज्ञप्ति निकालकर भूल जाने में माहिर है, वर्ष 2018 में लेखा जैसे पदों पर सीधी भर्ती के तहत विज्ञप्ति निकालकर अपने चहेतों को लेखा पदों पर प्रतिनियुक्ति के माध्यम से काम चलाऊ व्यवस्था चलाना भरसार के अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता है! 
सेलाकुई को छोड़ दिया जाए तो भरसार विश्वविद्यालय का एक केन्द्र और है देहरादून में खाद्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान माजरीग्रांट, डोईवाला में स्थित है जहां लगभग 18-20 कर्मचारी स्थायी और उपनल से कार्यरत हैं! परंतु माजरीग्रांट सेंटर भी अधिकारियों के लिए वेतन स्रोत के अतिरिक्त किसी उपलब्धि का परिचायक नहीं है! उसका प्रीफैब स्क्ट्रचर आजतक बजट की अनुपलब्धता के कारण अधूरा सा है या यूं कहें कि उस बजट पर भी जंक लग गया है जो बजट इस संस्थान पर आजतक लगा है। जबकि यह संस्थान उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की विधानसभा के अन्तर्गत आता है। वैसे तो माजरीग्रांट में खाद्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान है परंतु अधूरी व्यवस्था के चलते यह कागजों में फूड प्रोसेसिंग ट्रेनिंग संस्थान बनकर रह गया है! जिसका फायदा किसी आम आदमी को हुआ हो या नहीं पर विभागीय अधिकारियों को अपनी मासिक प्रगति आख्या में लिखने के लिए जरूर हुआ है! 
मुख्यमंत्री की पूरी विधानसभा का हाल बेहाल है परंतु खाद्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान माजरीग्रांट की खस्ता हाल स्थिति सबकुछ बयां करने के लिए काफी है।
और भी कई विभाग हैं जिनके मुख्यालय तो पहाडों में हैं परंतु उनके मुखिया देहरादून में किसी न किसी बहाने अपना राजधानी प्रेम दिल में समाए बैठे हैं सुबोध उनियाल कि तरह क्या उन विभागों के मंत्री भी अपना रूतबा दिखाएंगे या फिर आंखें बंदकरके सो जाएंगे।
देहरादून में संस्थान के केन्द्रों को बंद करना ही अंतिम रास्ता है तो सचिवालय, विधानसभा सब बंद करके पहाडों में बना दो तो कुछ बात बने। जो भी हो कृषि मंत्री का दमदार कदम कई सवाल खड़े कर गया अब इनके जवाब भी मिल पाएंगे या नहीं यह तो भविष्य में ही पता चल पाएगा।