अपनी ही काबिलियत पर प्रश्न चिन्ह लगाते माननीय? 

इस शीर्षक को पढ़कर आपको बड़ा अटपटा लग रहा होगा। परंतु यह सोलह आने सच है। आज उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश के हर कोने में प्रदेश का दबदबा ऐसा है जो किसी पहचान का मोहताज नहीं है। प्रधानमंत्री जी के सुरक्षा सलाहकार हों, केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री हों, चाहे तीनों सेनाओं के प्रमुख, यूपी के मुख्यमंत्री हों, या फिर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, वन मंत्री, पर्यटन मंत्री, उच्च शिक्षा मंत्री हों, हर पद पर दबदबा है।
बावजूद इसके सबसे खस्ता हाल पहाड़ी क्षेत्रों का है। फिर चाहे बात जंगली जानवरों के बढ़ते आतंक की हो, या फिर बदहाल स्वास्थ्य सुविधाओं की, या फिर पलायन की, या फिर खस्ताहाल सड़कों की, या फिर शिक्षा के गिरते स्तर की! हर क्षेत्र में पहाड़ पिछड़ता जा रहा है।
इतनी योग्यताधारियों के रहते पहाड़ के हाल और स्थिति क्या होगी सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
अब आप ही बताइए कि पहाड़ के पिछड़ेपन से क्या पहाड़ की काबिलियत पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगता है! जहां के सर्वोच्च पदों पर आसीन व्यक्ति अपने ही क्षेत्रों का विकास नहीं कर पा रहे हैं, वहां के लिए उनके पास न तो कोई ठोस नीति है और न ही कोई ठोस कार्ययोजना!
जब आज पहाड़ के पास सबकुछ है परंतु फिर भी खाली हाथ है तो इसका कारण जानते हैं आप क्या है?
दरअसल इस सबका कारण है इच्छाशक्ति की कमी। वो कैसे है आपको एक उदाहरण के माध्यम से समझाते हैं।
उत्तराखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री जी ने देहरादून में इन्वेस्टर्स समिट कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें बतौर मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री जी उपस्थित हुए। उस दौरान आपने देखा होगा देहरादून एक हफ्ते में ऐसा चमका दिया गया था मानों हम कहीं विदेशी धरती पर चहलकदमी कर रहे हों।
वो सब जो हुआ उसको करने के लिए कोई बाहर से नहीं आया था बल्कि पदासीन भी वही थे, कार्य करने वाले भी वही थे जो आज हैं, उस समय और आज के समय में सिर्फ एक अंतर है वह है इच्छाशक्ति की। 
जिस दिन इच्छाशक्ति में दृढ़ता का समावेश हो जाएगा तब कहीं जाकर पहाड़ का भला हो पाएगा अन्यथा तब तक कितने भी लोग पदों पर आते रहें जाते रहें कुछ नहीं होने वाला है!