पता था लहरों को अंजाम
आखिर गुम समंदर में होना है.
मगर जुनून बगावत का था
के पत्थरो से टकराना है.
खामोश समंदर भी देखता रहा
नफ़रत जो लहरों की है.
गले लगाने को आतुर था
आखिर अपने तो है.
बहा कर लाये थे सैलाब
संग गंदगी ए तमाम जालिम.
समा लिया खुद में आखिर
अपनो का तोहफ़ा तो है.
इन हरकतो से कभी कभी
समंदर भी रोता है.
फ़िर भी पनाह दी है
आखिर अपने तो है.
तेरे हौशले की दाद देता हूँ
दर्द में भी खामोश है
तभी तो मै इंसान हूँ
और तू समंदर है.
पता है लहरों को