सरकारी सिस्टम - ऊंची दुकान फीके पकवान

सरकार, जनता की जनता के लिए चुनी हुई ऐसी व्यवस्था है जो जनता के हितों की रक्षा करती है और उसको ज्यादा सशक्त बनाने का कार्य करती है। परंतु उत्तराखंड का सरकारी तंत्र तो अपनी ही रक्षा नहीं कर पा रहा है, अपनी ही संपत्तियों को संरक्षण नहीं दे पा रहा है तो जनता के हितों की रक्षा की बात का तो सवाल ही नहीं उठता।
ऐसा मैं नहीं कह रही हूं और न ही जनता कह रही है बल्कि ऐसा तो खुद सरकारी संपत्ति का बंजरपन कह रहा है, पूर्ववर्ती सरकार में आबाद सरकारी आवास आज बंजर और खंडर बन रहे हैं है।
दरअसल, उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी देहरादून के यमुना कालोनी में सरकारी आवास बने हुए हैं जो समय-समय पर पदासीन निर्वाचित सदस्यों को आवंटित होते हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और पांचवें वित्त आयोग को आवंटित सरकारी आवासों के बाद आवास संख्या ए४, ए५ और ए६ अपनी बदहाली का रोना रोएं भी तो किसके आगे! इनमें से आवास संख्या ए५ पूर्ववर्ती सरकार में मंत्री रहे दिनेश धनै को आवंटित था जो बंजर और विरान है इसके बाद आवास संख्या ए६ है जिसके अंदर झाड़ियों की नई नई प्रजातियां हमारे सिस्टम के नक्कारेपन को उजागर कर रही है।
जिस भी विभाग की जिम्मेदारी इन आवासों को आंवटित और देखभाल करने की होती है क्यों न इनके रखरखाव के लिए उस विभाग अधिकारियों के वेतन से कटौती कर की जाए? खंडहर और बंजर होते ऐसे भवनों की देखभाल क्या तभी की जाएगी जब यह आवास किसी के नाम आंवटित होंगे! तब तक क्या यह आवास शराबियों और जुआरियों का अड्डा बनाने के लिए छोड़ दिया जाता है? लावारिस संपत्ति की तरह हाल बनाकर विकास की राह के सपने संजोना कितना सही और कितना गलत है? फैसला आपके हाथ!