ये जो पत्थर हैं

देखो तो ये पत्थर भी 
कितने नर्मदिल होते है. 
मेरी मनकी भावना 
बखूबी समझते है. 
दो रोटी के लिए अक्सर 
इन्हे कूटता पीटता हूँ. 
बच्चे न समझे दर्द बुढापे का 
ये पत्थर समझते है. 
तभी तो मेरे लिए 
हर रूप में ढलते है. 
इंसान आते है अक्सर 
हुनर की दाद दे जाते हैं. 
मेरे हाथों के छाले 
वे कहाँ देख पाते हैं 
अब कहाँ इंसानियत बची 
बस पुतले नजर आते हैं. 
उनसे तो ये पत्थर अच्छे 
दो रोटी तो दे जाते हैं. 
मैं तो कहता हूँ आज ये 
इंसान से कहाँ कम नजर आते हैं. 
ये पत्थरखुद दफ़न होकर 
तेरे महल बनाते हैं .
मंदिर मस्जिद गिर्जा गुरुद्वारे में 
अक्सर बिछाये जाते हैं. 
कभी तराश कर सहीद की समाधि 
कभी तेरी राह बनाते हैं. 
जाति मजहब में कैद नहीं है 
हर धर्म में समाते है. 
आज के इंसानोसे अच्छा 
ये पत्थर होते हैं. 
.ये भी दिल रखते हैं 
ये भी अक्सर रोते है. 
न जाने क्यों लोग इन्हे 
पत्थर दिल कहते हैं. 
बहुत नर्म होते हैं  
ये जो पत्थर होते हैं