........दर्द..........
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अब लौटें तो कैसे लौटें
रस्ते भूल चुका हूँ मैं.
अपने गाँव अपने घर को.
खंडर कर आया हूँ मै.
आज याद आता है मुझे.
गाँव तो कबका छोड़ आया हूँ मै.
कसूर बस इतना ही था.
कुछ पाना चाहता था मै.
कंकरीट के महलो की चाहत
मिट्टी के घर तोड आया था मै.
सिर्फ़ पैसा कमाया है मैने.
दिखावटी आराम भी खरीद लाया
सच कहूँ तो कभी भी वो
वो गाँव सा सुकून न खरीद पाय मै.
कुछ मजबूरी रही कुछ
दिखावे की आग में तप गया मै
बस इतनी सी बात थी और
गाँव छोड आया मैं.
आज सोचता हूँ क्या पाय.
जब आलमारी दवा से भरी पाता हूँ मैं.
बस नाम का शहरी हूँ दोस्त.
असल में तुम से कंगाल हूँ मैं.
आज जब भी देश दुनिया में हालात देखता हूँ.
बस गाँव को याद करता हूँ मैं.
जो जीते है असल जिंदगी आजाद होकर.
उन गाँव वालो को सलाम करता हूँ मैं.
मै मजबूर हूँ की लौट नहीं सकता.
मगर फ़िर भी गाँव लौटना चाहता हूँ मैं.
सन्दीप गढवाली
अब लौटें तो कैसे लौटें