ऐ कैसा मदर्स डे

किसी भी देश के त्यौहारों, संस्कृति और संस्कारों को आत्मसात करना एक बेहतरीन पहल है। यह हमारी विशाल संस्कृति के स्वरूप को बताता है। जहां संसार में कोई भी अच्छाई दिखी उसे हमने तुरंत आत्मसात कर लिया।
परंतु आपको ऐसा लगता है कि भारतीय संस्कृति में कहीं पर भी किसी भी कमी की गुंजाइश और ऐसी संभावना हो कि हमारे वेदों में, पुराणों में, शास्त्रों में, रामायण में, गीता में, उपनिषदों में किसी भी रिश्ते के महत्व को कम आंका गया होगा। तो जवाब होगा बिल्कुल नहीं।
ऐसा इसलिए कि संसार के अन्य देशों में जो भी प्रथाएं प्रारंभ हुई उनकी एक तिथि दी गई है परंतु भारत के विषय में ऐसा नहीं है क्योंकि सृष्टि की रचना से ही हमारे धार्मिक ग्रंथ मौजूद हैं। जो व्यवहारिक व वैज्ञानिक दोनों तरीके से सर्वगुण सम्पन्न हैं।
इस विषय को लाने का कारण सिर्फ आज का मदर्स डे है। जिस पर सोशल मीडिया पर संदेशों की एक बाढ़ सी आ गई है। परंतु आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारतीय धर्म ग्रंथ में स्पष्ट उल्लेख है कि "जननी जन्मभूमुश्च स्वर्गादपि गरीयसी।" अर्थात जननी यानी माता और जन्मभूमि दोनों स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है। दोनों का सम्मान होना चाहिए।  परंतु हम अपनी सर्वश्रेष्ठता को छोड़कर सन् 1912 में बने मदर्स डे को एक दिन के लिए इतना प्रेम जता रहे हैं जैसे हम ठेठ संस्कृति शून्य हों और हमारे पास एक दिन के महत्व को मनाने के अतिरिक्त कोई दूसरा चारा न हो।
इसलिए अपनी संस्कृति पर गर्व कीजिए और एक दिन के महत्व को प्राथमिकता न देकर अपने संस्कारों को महत्व दीजिए और अपनी दिनचर्या में इसका पालन कीजिए। यही सच्ची भावना और सच्चा प्यार होगा।